डाली से गिरे सूखे पड़े पत्ते में अभी भी
छुपा हुआ है कहीं तो थोड़्हा हरा रंग
आज कल दर्द में भी वो खुश दीखता हैं
शायद उसे मिला है ओस की बूंदों का संग
वो खिल खिला रहा हैं
बातें किसी तो वो कर रहा हैं
वो देखो उस छाव में
किसी से वो कुछ जिकर कर रहा हैं
होठों उसके भीगे हुए हैं
शायद वो पानी मई कहीं लगे हुए हैं
नहीं नहीं हैं, वो कहीं तो
किसी लिपस्टिक से दबे हुए हैं
जब में यहाँ से कुछ साल पहले गुजरा था
वो कहीं कोने में सूखा पड़ा था
कुछ शायद उसको कहीं से मिल गया हैं
सिर्फ दो बूंदों से वो इतना खिल गया हैं
क्या हैं इसका इतना गहरा राज
जो ये हमे नहीं बताता हैं
ख़ुशी इसकी देख कर लगता हैं
जरुर इसको कोई बहुत भाता हैं
एक दिन हमने यह योजना बनायीं
आखिर कौन हैं जो इसको इतना भा रहा हैं
वो देखो नीचे पड़े पत्ते को
कोई अपने गले से लगा रहा है
कहाँ से आई है यह दो बूंदे
जो इसको दो घुट पिला रही है
सुनहरा हरा रंग बनके
उसके हरदे मे समां रही है
लूट रहा है वो इन बूंदों को jaam समझ कर
नशे मे धुत्त लग रहा है वो
आखिर क्यों न हो वो सूखा पत्ता इस नशे मे
पीने के लिए कई सालों से तरस रहा है वो
सांस ले रहा है वो इस खुली हवा मे अब तो
अब कलि शाम उसके ख़ुशी के उजाले मे कम पड़ जायेगी
पी लेगा यह सारी खुशियाँ बंद बूंदों मे मिठास की
कडवी लगने वाली किस्मत शक्कर से भरे घोल मे जम जायेगी
नशे में चूर है इस सूखे पत्ते की मद भरी यह शाम
और उसको बूंदे अपने दिल से लगा रही है
मुसाफिर बनके के वो आई थी आसमा से यहाँ
अब पत्ते का खालीपन अपने मे समां रही है